Tarang
Longlisted | Book Awards 2021 | Hindi Non-fiction
Tarang
देश के वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य की विसंगतियों, द्वंद्वों और दुविधाओं के उत्स की तलाश है तरंग। यह तलाश इतिहास के जिस कालखंड (1934-42 ) में ले जाती है उसकी धड़कनें स्वातंत्र्योत्तर भारत की बुनियाद में अंतर्भुक्त हैं और उसकी यात्रा को लगातार विचलित-आलोडित करती रही हैं। उस कालखंड में इन विसंगतियों, द्वंद्वों और दुविधाओं को जिस तरह बरता गया, उसका फलित हमें आज भी उद्भांत किए हुए है। उपन्यास के रूप में तरंग उसी कालखंड की गहन पड़ताल करती एक बहुआयामी कथा है जिसकी जड़ों के रेशे पिछली सदी के आरंभ तक जाते हैं। भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद के बलिदान के साथ हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी की क्रांतिकारी धारा का अवसान नहीं हो गया था, उसमें बिखराव जरूर आया था। तरंग एक औपन्यासिक कृति के रूप में उसी अवशिष्ट धारा के एक विच्छिन्न समूह के गुमनाम क्रांतिकारियों के अंतरंग से साक्षात्कार कराती है। उसी धारा को केंद्र में रखकर वैश्विक परिप्रेक्ष्य में स्वतंत्रता आंदोलन की मुख्यधारा का प्रतिपाठ भी रचती है और इतिहास के कई मिथकों का भेदन करती है। इस अर्थ में तरंग भारतीय और विश्व इतिहास के एक अहम अध्याय में उपन्यासकार का सुचिंतित सृजनात्मक हस्तक्षेप है। गांधी-नेहरू-पटेल की अंतर्विरोधी धारा के बरअक्स उपन्यास का विशाल फलक स्वामी सहजानंद, डॉ. अम्बेडकर, एम. एन. रॉय और सुभाष चंद बोस के गिर्द घूमता है और अकादमिक इतिहास-लेखन के कुहासे को भेदकर उसके उपेक्षित या अल्पज्ञात पक्ष को निर्मम यथार्थ की रोशनी में उद्घाटित करता है। इस अर्थ में उपन्यास उस कालखंड के ज़मीनी, अंतरंग और ज़रूरी दस्तावेज़ की निर्मिति भी है। अकादमिक रिक्ति को भरने का एक श्रमसाध्य, निष्ठावान और सृजनात्मक उपक्रम। उस कालखंड में किसान आंदोलन की एक उत्कट क्रांतिकारी धारा भी प्रवाहित है जो जमींदारोंताल्लुकेदारों के विरुद्ध किसान-संघर्ष की नई प्रविधि ईजाद करती है। क्रांतिकारियों का उक्त समूह स्वामी सहजानंद के उत्प्रेरण में इस ईजाद के केन्द्र में है। इस ब्याज से उपन्यास सबाल्टर्न इतिहास के एक अंधेरे कोने को दीप्त करता है। क्रांति-पथ को स्खलित करने की ओर प्रवृत्त ऐंद्रिकत स्त्री-पुरुष सम्बंध का कलात्मक अतिक्रमण भी तरंग का एक अहम उपजीव्य है।.
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