Sayaani Deewani
Shortlisted | Book Awards 2021 | Hindi Fiction
Sayaani Deewani
इस्मत चुग़ताई, रशीदा जहाँ, क़ुर्रतुल-ऐन-हैदर, जीलानी बानो की रिवायतों को आगे बढ़ानेवाली नूर ज़हीर हमारे समय के उन विशिष्ट कथाकारों में से हैं जिन्होंने मज़हबी कठमुल्लेपन और पुरुषवादी मानसिकता के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलन्द की। उनके उपन्यास 'माइ गॉड इज़ ए वुमन' (जो हिन्दी में 'अपना ख़ुदा एक औरत' नाम से प्रकाशित हुआ है) में मज़हबी संकीर्णता के ख़िलाफ़ स्त्री-मुक्ति की कई छवियाँ देखी जा सकती हैं। उनकी कहानियों के स्त्री-पात्र मज़हबी संकीर्णताओं के शिकंजों से बाहर निकलकर अपनी मुक्ति के रास्ते तलाश करते हुए दिखाई देते हैं। नूर ज़हीर की कहानियों की एक ख़ूबी यह है कि वे पुरुषप्रधान समाज में स्त्री की स्थितियों को मानवीय करुणा के साथ व्यक्त करती हैं। वे ऐसे स्त्री-पात्रों की रचना करती हैं जो पुरुषप्रधान समाज द्वारा निर्धारित रूढ़ियों और रिवायतों के ख़िलाफ़ उठकर अपनी अस्मिता की तलाश करती हैं। नूर ज़हीर की कहानियाँ पुरुष मानसिकता के सख़्त शिकंजे के ही नहीं, सख़्त मज़हबी शिकंजों के ख़िलाफ़ भी अपनी आवाज़ बुलन्द करती नज़र आती हैं। नूर ज़हीर अपनी कहानियों में स्थितियों, पात्रों की मनोदशाओं और कहानी के ब्योरों का बेहद मार्मिक वर्णन करती हैं। वे बहुत छोटे-छोटे दृश्यों और संवादों के ज़रिए कहानी का ताना-बाना इस तरह बुनती हैं कि पाठक उनसे सहज ही जुड़ाव महसूस करता है। —हरियश.
लखनऊ में जन्म। हिन्दी, अंग्रेज़ी और उर्दू में लेखन। प्रमुख पुस्तकें: मेरे हिस्से की रोशनाई, स्याही की एक बूँद (संस्मरण); रेत पर ख़ून, ख़ामोश पहाड़, सुलगते जंगल (कहानी-संग्रह); बड़ उरइय्ये, माइ गॉड इज़ ए वुमन (उपन्यास); सुर्ख़ कारवाँ के हमसफ़र, एट होम इन एनिमी लैंड (यात्रा-वृत्तान्त); पत्थर के सैनिक (नाटक); दि डांसिंग लामा (बौद्ध अभिनयात्मक कलाओं पर शोध), उत्तर पश्चिमी हिमालय में बौद्ध, आदिवासी और मौखिक परम्परा (शोध); डिनाइड बाइ अल्लाह (विमर्श); आज के नाम (फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का जीवन); उर्दू में आरम्भिक महिला लेखन (संकलन और अंग्रेजी में अनुवाद)। प्रमुख सम्मान: 'शिखर सम्मान', 'कृति सम्मान' (हिन्दी अकादमी); 'सार्क राइटर्स लिटरेरी अवार्ड'; 'लाडली अवार्ड' (पापुलेशन फर्स्ट); 'उर्दू अंजुमन अवार्ड, जर्मनी' आदि। भारतीय जन नाट्य संघ, इप्टा (दिल्ली) की वर्तमान अध्यक्ष और राष्ट्रीय सचिव।.
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