Rishton Ka Shahar
Nominated | Book Awards 2021 | Hindi Fiction
Rishton Ka Shahar
कथा लेखन का नया क्षितिज-निर्मला तोदी बच्चा जैसे-जैसे ग्रो करता है, वैसे-वैसे अपने आसपास की चीजों को, अपने और अजनबियों के रिश्तों को जिज्ञासुभाव से देखता, परखता है। कुछ को समझ पाता है पर कुछ पहेलियों से होते हैं जिन्हें वह बूझने की कोशिश करता है। कुछ उसके बोध में समा पाते हैं, कुछ नहीं-यौनिकता, जैविकता एगर्भ, विकास, प्रसव, प्रेम, स्नेह, वात्सल्य, दूरियाँ, नजदीकियाँ, शिशु हत्या और ठंडी हिंसा के डरावने परिप्रेक्ष्य और परतें तथा सलवटें आदि शिशु से किशोर, किशोर से वयस्क होने के इन्हीं पड़ावों और द्वंदों की तफ्तीश करती है निर्मला तोदी की कहानियाँ। बालिग होने के पहले ही कभी बड़े हो जाते हैं बच्चे और कभी बड़े होने के पूर्व ही बालिग। कभी-कभी नहीं... कुछ भी नहीं। पीछे कुछ छूटता जाता है, कुछ टूटता जाता है, कुछ छूट कर भी नहीं छूटता, कुछ टूट कर भी नहीं टूटता । इस तरह देखें तो निर्मला की कहानियाँ पीछे मुड़कर उस अतीत और व्यतीत की परछाइयों तथा अनगत की आहटों को पुनरुज्जीवित करने की कहानियाँ हैं। दूसरी तरह से देखें तो निर्मला की कहानियाँ अनुभव और कल्पना, घटित और अघटित, सच और झूठ के बीच फैले उस बफरजोन की ग्रे एरिया को भी पकड़ती है। कहानी से गुजरते हुए आप निर्मला को एक टिपिकल महिला लेखन से आगे एक मैच्योर्ड राइटिंग में कदम रखते हुए पाते हैं। धूप-छांवों की भाषा, चीजों को पूरा न खोलते हुए भी कथा की लता को फैलाते या उलझाते जाना। इतनी गझिन बुनावट में क्लैरिटी बनाए रख पाना दुष्कर होता है। रिश्तों के लिए भी कहानी के लिए भी। निर्मला के लेखन को इस दृष्टि से भी परखना लाजिम है। 'रिश्तों के शहर' कहानी एक ट्रायोलोजी है। 'कलकत्ता -बम्बई-बैगलोर 'बैंगलोर-कोलकत्ता-बम्बई” और बैंगलोर-कलकत्ता-यूएसए' के उपशीर्षकों में विभक्त यह लम्बी कहानी अपनी बुनावट में अहमदाबाद समेत कई शहरों, कई चरित्र को अपनी जद में लेती है। नायिका और उसकी दो बेटियाँ, अनिशा और मिष्टि, पिता अनर्व के फैलते तन्तु जाल की शतरंज।
कथा लेखन का नया क्षितिज-निर्मला तोदी बच्चा जैसे-जैसे ग्रो करता है, वैसे-वैसे अपने आसपास की चीजों को, अपने और अजनबियों के रिश्तों को जिज्ञासुभाव से देखता, परखता है। कुछ को समझ पाता है पर कुछ पहेलियों से होते हैं जिन्हें वह बूझने की कोशिश करता है। कुछ उसके बोध में समा पाते हैं, कुछ नहीं-यौनिकता, जैविकता एगर्भ, विकास, प्रसव, प्रेम, स्नेह, वात्सल्य, दूरियाँ, नजदीकियाँ, शिशु हत्या और ठंडी हिंसा के डरावने परिप्रेक्ष्य और परतें तथा सलवटें आदि शिशु से किशोर, किशोर से वयस्क होने के इन्हीं पड़ावों और द्वंदों की तफ्तीश करती है निर्मला तोदी की कहानियाँ। बालिग होने के पहले ही कभी बड़े हो जाते हैं बच्चे और कभी बड़े होने के पूर्व ही बालिग। कभी-कभी नहीं... कुछ भी नहीं। पीछे कुछ छूटता जाता है, कुछ टूटता जाता है, कुछ छूट कर भी नहीं छूटता, कुछ टूट कर भी नहीं टूटता । इस तरह देखें तो निर्मला की कहानियाँ पीछे मुड़कर उस अतीत और व्यतीत की परछाइयों तथा अनगत की आहटों को पुनरुज्जीवित करने की कहानियाँ हैं। दूसरी तरह से देखें तो निर्मला की कहानियाँ अनुभव और कल्पना, घटित और अघटित, सच और झूठ के बीच फैले उस बफरजोन की ग्रे एरिया को भी पकड़ती है। कहानी से गुजरते हुए आप निर्मला को एक टिपिकल महिला लेखन से आगे एक मैच्योर्ड राइटिंग में कदम रखते हुए पाते हैं। धूप-छांवों की भाषा, चीजों को पूरा न खोलते हुए भी कथा की लता को फैलाते या उलझाते जाना। इतनी गझिन बुनावट में क्लैरिटी बनाए रख पाना दुष्कर होता है। रिश्तों के लिए भी कहानी के लिए भी। निर्मला के लेखन को इस दृष्टि से भी परखना लाजिम है। 'रिश्तों के शहर' कहानी एक ट्रायोलोजी है। 'कलकत्ता -बम्बई-बैगलोर 'बैंगलोर-कोलकत्ता-बम्बई” और बैंगलोर-कलकत्ता-यूएसए' के उपशीर्षकों में विभक्त यह लम्बी कहानी अपनी बुनावट में अहमदाबाद समेत कई शहरों, कई चरित्र को अपनी जद में लेती है। नायिका और उसकी दो बेटियाँ, अनिशा और मिष्टि, पिता अनर्व के फैलते तन्तु जाल की शतरंज।
निर्मला तोदी कलकत्ते में जन्म और शिक्षा देश की सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन इन दिनों कहानी लेखन में सक्रिय। तद्भव 2016 में प्रकाशित लम्बी कहानी 'रिश्तों के शहर' बहू प्रशंषित व बहू चर्चित पत्रिका नया ज्ञानोदय, हंस, कथादेश, इंद्रप्रस्थ भारती , बहुवचन कहानी विशेषांक आदि में कहानी प्रकाशित। प्रकाशन य अच्छा लगता है काव्य-संग्रह 2013 में नयी किताब से सड़क मोड़ घर और मैं काव्य-संग्रह 2017 में वाणी प्रकाशन से प्रकाशित। संप्रति य स्वतंत्र लेखन सम्पर्क : 6/1/3 कवीन्स पार्क कोलकत्त 700019 मो. : 09831054444 ई-मेल : nirmalatodi10@gmail.com
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