Maitri

Nominated | Book Awards 2021 | Hindi Fiction
Maitri
बहुत सारी कविता सदियों से जगहों के बारे में होती आयी है। पर ऐसी भी कविताएँ हुई हैं जो जगह बनाती हैं : अपनी जगह रचती हैं। वह जगह कहीं और नहीं होती न ही जानी-पहचानी जगहों से मिलती-जुलती है। वह सिर्फ़ कविता में होती है। तेजी ग्रोवर के इस नये कविता संग्रह की कविताएँ मिलकर ऐसी ही जगह गढ़ती हैं। उनकी चित्रमयता, अन्तर्ध्वनियाँ और अनुगूँजे इधर-उधर की होते हुए भी उस जगह का सत्यापन हैं जो कविता से रची गयी है। दुख, अनगढ़ मृत्यु, सियाह पत्थर पर शब्द, कठपुतली की आँख, क्षिप्रा की सतह पर काई, हरा झोंका, श्वेताम्बरी, लौकी-हरा गिरगिट, शब्दों की आँच, एक बच्चे का सा उठ जाता मन, देहरियों पर नाचती हुई ओस की रोशनी, सूर्य की जगह कोयले, सितारों के बीच अवकाश आदि मिलकर और अलग-अलग भी उस जगह को रोशन करते हैं जो कविता ही बना सकती है। इन कविताओं में परिष्कार और परिपक्वता है। भाषा निरलंकार है, चित्रमय लेकिन दिगम्बर। उसमें संयम भी है और अधिक न कहने का संकोच भी। यह ऐसी कविता है जो संगीत की तरह मद्धिम लय में अपना लोक गढ़ती है और आपको धीरे-धीरे घेरती है पर ऐसे कि आप आक्रान्त न हों। वह भी बचे और आप भी बचें। उसकी मैत्री यही है कि वह मुक्त करती है क्योंकि वह मुक्त है। उसकी हिचकिचाती सी विवक्षा उसकी मुक्ति है। तेजी ग्रोवर की ये कविताएँ आज लिखी जा रही ज़्यादातर हिन्दी कविताओं से बिल्कुल अलग हैं। यह उन्हें एक ऐसी आभा देता है जो नाटकीय नहीं शान्त और मन्द है, लगभग मौन जैसा। वह आपको चकाचौंध और चीख-पुकार से हल्के से हाथ पकड़कर उधर ले जाती है जहाँ कुछ मौन है, कुछ शब्द हैं और कुछ ऐसी जगह जहाँ आप शायद ही पहले गये हों। -अशोक वाजपेयी
बहुत सारी कविता सदियों से जगहों के बारे में होती आयी है। पर ऐसी भी कविताएँ हुई हैं जो जगह बनाती हैं : अपनी जगह रचती हैं। वह जगह कहीं और नहीं होती न ही जानी-पहचानी जगहों से मिलती-जुलती है। वह सिर्फ़ कविता में होती है। तेजी ग्रोवर के इस नये कविता संग्रह की कविताएँ मिलकर ऐसी ही जगह गढ़ती हैं। उनकी चित्रमयता, अन्तर्ध्वनियाँ और अनुगूँजे इधर-उधर की होते हुए भी उस जगह का सत्यापन हैं जो कविता से रची गयी है। दुख, अनगढ़ मृत्यु, सियाह पत्थर पर शब्द, कठपुतली की आँख, क्षिप्रा की सतह पर काई, हरा झोंका, श्वेताम्बरी, लौकी-हरा गिरगिट, शब्दों की आँच, एक बच्चे का सा उठ जाता मन, देहरियों पर नाचती हुई ओस की रोशनी, सूर्य की जगह कोयले, सितारों के बीच अवकाश आदि मिलकर और अलग-अलग भी उस जगह को रोशन करते हैं जो कविता ही बना सकती है। इन कविताओं में परिष्कार और परिपक्वता है। भाषा निरलंकार है, चित्रमय लेकिन दिगम्बर। उसमें संयम भी है और अधिक न कहने का संकोच भी। यह ऐसी कविता है जो संगीत की तरह मद्धिम लय में अपना लोक गढ़ती है और आपको धीरे-धीरे घेरती है पर ऐसे कि आप आक्रान्त न हों। वह भी बचे और आप भी बचें। उसकी मैत्री यही है कि वह मुक्त करती है क्योंकि वह मुक्त है। उसकी हिचकिचाती सी विवक्षा उसकी मुक्ति है। तेजी ग्रोवर की ये कविताएँ आज लिखी जा रही ज़्यादातर हिन्दी कविताओं से बिल्कुल अलग हैं। यह उन्हें एक ऐसी आभा देता है जो नाटकीय नहीं शान्त और मन्द है, लगभग मौन जैसा। वह आपको चकाचौंध और चीख-पुकार से हल्के से हाथ पकड़कर उधर ले जाती है जहाँ कुछ मौन है, कुछ शब्द हैं और कुछ ऐसी जगह जहाँ आप शायद ही पहले गये हों। -अशोक वाजपेयी
वर्ष 1995-1997 के दौरान प्रेमचंद सृजनपीठ, उज्जैन की अध्यक्षता एवं वर्ष 1989 में भारतभूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार, 2003 में रज़ा फाउंडेशन फेलोशिप और वरिष्ठ कलाकारों हेतु नेशनल कल्चरल फ़ेलोशिप प्राप्त करने वाली तेजी ग्रोवर का जन्म 7 मार्च 1955 को पठानकोट में हुआ । चंडीगढ़ के एक कॉलेज में कई वर्षों तक अंग्रेजी पढ़ाने का काम छोड़ कर इन दिनों मध्यप्रदेश में रह रही हैं। लेखन के अलावा पेंटिंग करना, बच्चों के साहित्य का सम्पादन, संकलन, अनुवाद और सृजन, नर्मदा जी के सान्निध्य में। इनके द्वारा अनुवाद पुस्तकें-भूख(नार्वीजी लेखक क्नुत हाम्सुन का उपन्यास), बर्फ़ की खुशबू(स्वीडी कविता का संकलन), इत्यादि पुस्तकें प्रकाशित हैं।
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