Jinhen Jurme Ishq Pe Naaz Tha
Shortlisted | Book Awards 2020 | Creative Writing in Hindi (Fiction & Poetry)
Jinhen Jurme Ishq Pe Naaz Tha
यह उपन्यास 'जिन्हें जुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था' हमारे चारों ओर पसरते जा रहे अंधकार को चीरकर एक प्रकाश-पुंज की तरह सामने आता है। निराशा के इस जानलेवा समय में पंकज सुबीर की यह कृति हमें हौसला और उम्मीद बँधाती है। इसे पाठ्यक्रमों में सम्मिलित किया जाना चाहिए और युवाओं तक निःशुल्क पहुँचाया जाना चाहिए। आज के पुस्तक और प्रेम विरोधी दौर में ऐसा कुछ किया जाना चाहिए कि 'जिन्हें जुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था' उपन्यास घर-घर में पढ़ा जाए। हिन्दी के चर्चित लेखक पंकज सुबीर का तीसरा उपन्यास। पंकज सुबीर के पहले दोनो उपन्यास "ये वो सहर तो नहीं" और "अकाल में उत्सव" बहुत अधिक चर्चित रहे हैं। कई सारे सम्मान इन दोनो उपन्यासों पर प्राप्त हुए। और अब पंकज सुबीर का तीसरा उपन्याास "जिन्हें जुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था" प्रकाशित होकर आया है। पंकज सुबीर अपनी अलग तरह की शैली तथा विशिष्ट भाषा के लिए पहचाने जाते हैं। यह उपन्यास भी उसी कड़ी में एक प्रयोग है। यह उपन्यास मानव सभ्यता के पिछले पाँच हज़ार वर्षों की कहानी कहता है। और तलाशने की कोशिश करता है कि आख़िर वो क्या है, जिसके कारण मानव सभ्यता पिछले पाँच हज़ार साल केवल लड़ाई और युद्ध में ही गँवा चुकी है। यह उपन्यास बहुत सूक्ष्मता के साथ पिछले पाँच हज़ार सालों की कहानी का अवलोकन करता है। पाठक को एक ऐसी दुनिया में ले जाता है, जहाँ वर्तमान और भविष्य के संकेत मिलते हैं।
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जिन्हें जुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था” यह किताब चर्चा का विषय नहीं हो सकती। किताब पर लगातार चर्चा हो रही है विचार-विमर्श हो रहा है, लेकिन इस किताब ने मेरे अंदर की कई चर्चाओं और सवालों को खत्म कर दिया। चीजों को खत्म कई तरीकों से किया जाता है, जब उनसे कोई मतलब ना रहे या हमें उनका अर्थ ना मिले। लेकिन इस किताब ने धर्म, सभ्यता और समाज के
प्रति मेरा मतलब बढ़ा दिया और उनके अर्थ को बखूबी समझा दिया। कई जिज्ञासा, सवालों के जवाब मुझे मिले। और एक जो चीज मुझे यहाँ सीखने को मिली वह यह थी कि धर्म और प्रेम शायद एक दूसरे के दुश्मन हैं। कट्टरता, यूँ कहें धार्मिक कट्टरता हमेशा घृणा, बेषता और हिंसा को बढ़ाती है। जबकि प्रेम इन सबको खत्म कर देता है और प्रेम को यह सब खत्म कर देते हैं। चुनना हमें हैं, घूणा या प्रेम। प्रेम चुना तो हम खुद को और समाज को स्वस्थ बना देंगे। घृणा चुनी तो हिंसक समाज तैयार हो जाएगा। एक चीज और जो मुझे समझ आती है कि किसी चीज का होना और किसी चीज को बनाना, दोनों में बहुत अंतर है। धर्म बनाई हुई चीज है। वहीं प्रेम हमारे अंदर होता है। हमने जिस चीज को बनाया उसी का आवरण हम पर चढ़ता गया और हम हिंसक होते गए। प्रेम का एक बीज जो अंदर ही था, उसे धर्म ने कभी वृक्ष बनने का मौका ही नहीं दिया। रामेश्वर, शाहनवाज़ और रामेश्वर के छात्रों के बीच जो प्रेम है वही धर्म की कट्टरता को कम करता है। एक बात और जो किताब पढ़ने के बाद समझ आती है वह यह है कि वर्षों से मनुष्य को जिस चीज ने पीड़ित किया है वह है वाद। ओशो ने भी कहीं कहा है कि 5000 वर्षों से मनुष्य को जिस चीज ने पीड़ित किया है वह वादा ही है। वह चाहे इस्लाम, चाहे इसाइयत, चाहे हिंदू हो, चाहे कम्युनिज्म हो, सोशलिज्म हो, फसिस्म हो या गांधी इज्म हो। वादों ने मनुष्य को बहुत ज्यादा पीडित और परेशान किया। इतिहास में कई युद्ध और हिंसा वादों के आसपास ही घटित हुई। वाद बदलते गए।वाद बीमारियों की तरह रहे। पुरानी बीमारी खत्म हुई नई बीमारी खड़ी हो गई। वाद खुद बीमारी है जो दूसरी बीमारी का डर बताकर बढ़ाई जाती है। हिंदुत्व का डर बताकर ईसाइयत बढ़ती और ईसाइयत का डर बताकर इस्लाम बढ़ता है। वाद को भी प्रेम खत्म कर सकता है। किताब को पढ़कर समझ आता है कि धर्म का दुरुपयोग और कट्टरता समाज के लिए किस तरह हानिकारक है और इससे हित साधने वाले लोग किस तरह फायदा उठाते हैं। यह बखूबी समझ में आया। लेखक की जितनी भी किताबें पढ़ी सब की भाषा शैली इतनी अच्छी होती है कि
पढ़ने वाले को सारी बातें तुरंत समझ आती हैं, समझने के लिए अलग से प्रयास नहीं करने होते। यह किताब उन किताबों की तुलना में कुछ कठिन है। इसमें तथ्य ज्यादा हैं। उनको समझने के लिए समय देना होता है, हालांकि यह तथ्य हर एक को पढ़ना चाहिए। धर्म की कट्टरता और वाद खत्म होना बहुत मुश्किल है, यह सभ्य समाज में कम होते हैं हिंसक समाज में दोनों बढ़ते जाते हैं। इसलिए इस किताब की महत्ता कभी कम नहीं होगी, हर युग में यह किताब पढ़ी जाने वाली किताब रहेगी। सभ्य समाज के लिए यह किताब किसी धर्म ग्रंथ से कम नहीं
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