Dastan-e-Mughal-e-Azam
Shortlisted | Book Awards 2021 | Hindi Non-fiction
Dastan-e-Mughal-e-Azam
राजकुमार केसवानी
यह दास्तान उस गुज़रे वक़्त की सैर है, जब के आसिफ़ नाम का एक इंसान, नफ़रतों से भरी दुनिया में हर तरफ़ मुहब्बत की ख़ुशबू फैलाने वाले एक ऐसे ला-फ़ानी दरख़्त की ईजाद में लगा था, जिसकी उम्र दुनिया की हर नफ़रत से ज़्यादा हो। जिसकी ख़ुशबू, रोज़-ए-क़यामत, ख़ुद क़यामत को भी इस दुनिया के इश्क़ में मुब्तला कर सके। उसी इंसान ईजाद का नाम है - मुग़ल-ए-आज़म ।
यह दास्तान, ज़मानत है इस बात की कि जब-जब इस दुनिया-ए-फ़ानी में कोई इंसान के आसिफ़ कि तरह अप्पने काम को जुनून की हदों के भी पार ले जाएगा, तो इश्क़-ए-मज़ाज़ी को इश्क़-ए-हक़ीक़ी में तब्दील कर जाएगा। उसकी दास्तान को भी वही बुलंद और आला मक़ाम हासिल होगा, जो आज मुग़ल-ए-आज़म को हासिल है।
राजकुमार केसवानी पत्रकारिता के 50 साल के सफ़र के दौरान न्यू यॉर्क टाइम्स, द इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया, संडे, द संडे ऑब्ज़र्वर, इंडिया टुडे, आउटलुक, इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली, इंडियन एक्सप्रेस, जनसत्ता, नव भारत टाइम्स, दिनमान, न्यूज़टाइम, ट्रिब्यून, द वीक, द एशियन एज, द इंडिपेंडेंट जैसे प्रतिष्ठित प्रकाशनों से विभिन्न रूप में सम्बन्ध रहे। 1998 से 2003 तक एनडीटीवी के मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ ब्यूरो प्रमुख रहे, 2003 से दैनिक भास्कर, इंदौर संस्करण के संपादक तथा 2004 से 2010 तक भास्कर समूह में ही संपादक के पद पर कार्यरत रहे।
“मेरी आख़िरी इल्तजा है दुनिया में दिलवालों का साथ देना, दौलत वालों का नहीं।”
सलीम
'तख़्त क्या चीज़ है और लाल-ओ-जवाहर क्या है
इश्क़ वाले तो ख़ुदाई भी लुटा देते हैं'
फ़िल्म 'मुग़ल-ए-आज़म' हिंदुस्तानी सिनेमा के इतिहास का एक ऐसा संगे- मील है, जहाँ पहुँचने का ख़्वाब हर फ़िल्मकार देखता है, लेकिन अब तक पहुँच कोई नहीं पाया। इस ग़ैर मामूली काम को अंजाम दिया निर्देशक करीमुद्दीन आसिफ़ ने। प्रेम त्रिकोण की ऐसी बहुआयामी कहानी, जिसे आसिफ़ ने अकबर-ए-आज़म के किरदार से दी नई ऊँचाइयाँ। मुहब्बत की इस दास्तान का जादू चार पीढ़ियों के बाद भी जवाँ है।
Review Dastan-e-Mughal-e-Azam.