Agnileek
Shortlisted | Book Awards 2020 | Creative Writing in Hindi (Fiction & Poetry)
Agnileek
हृषीकेश सुलभ के उपन्यास अग्निलीक में बिहार के गाँवों के बदलने की कथा दर्ज है। यह कथा फणीश्वरनाथ रेणु की कथा-भूमि की याद दिलाती है। रेणु ने कोसी तट के आसपास बसे गाँवों को अपना कथा-विषय चुना था। सुलभ जी ने अपने इस पहले उपन्यास में घाघरा नदी के किनारे बसे गाँवों की कथा कही है। वे आज़ादी से पहले और उसके बाद घाघरा और गंडक नदी के आसपास के इलाकों में आए बाह्य परिवर्तनों को चिह्नित करने के साथ-साथ यहाँ की सामंती सामाजिक संरचना में हो रहे अन्दरूनी बदलावों को भी सामने ले आते हैं। वे स्त्रियों के जीवन में घटित हो रहे परिवर्तन की अंतर्कथा को भी बहुत सूक्ष्मता से मुख्यकथा के साथ पिरोते चलते है। यह पुरबियों के जीवन-परिवर्तन की कथा है।
कथाकार, नाटककार, रंग-समीक्षक हृषीकेश सुलभ का जन्म 15 फरवरी, 1955 को बिहार के छपरा (अब सीवान) जनपद के लहेजी नामक गाँव में हुआ। आरम्भिक शिक्षा गाँव में हुई और अपने गाँव के रंगमंच से ही आपने रंग-संस्कार ग्रहण किया। आपकी कहानियाँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित और अंग्रेज़ी सहित विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनूदित हो चुकी हैं।
आप रंगमंच से गहरे जुड़ाव के कारण कथा-लेखन के साथ-साथ नाट्य-लेखन की ओर उन्मुख हुए और भिखारी ठाकुर की प्रसिद्ध नाट्यशैली बिदेसिया की रंगयुक्तियों का आधुनिक हिन्दी रंगमंच के लिए पहली बार अपने नाट्यालेखों में सृजनात्मक प्रयोग किया। विगत कुछ वर्षों से आप कथादेश मासिक में रंगमंच पर नियमित लेखन कर रहे हैं।
आपकी प्रकाशित कृतियाँ हैं: तूती की आवाज़ (पथरकट, वधस्थल से छलाँग और बँधा है काल एक जिल्द में शामिल), हलन्त, वसंत के हत्यारे (कहानी-संग्रह); प्रतिनिधि कहानियाँ (चयन); अमली, बटोही, धरती आबा (नाटक); माटीगाड़ी (शूद्रक रचित मृच्छकटिकम् की पुनर्रचना), मैला आँचल (फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास का नाट्यान्तर), दालिया (रवीन्द्रनाथ टैगोर की कहानी पर आधारित नाटक); रंगमंच का जनतंत्र और रंग-अरंग (नाट्य-चिन्तन)।
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