रेत समाधी (Ret Samadhi)
Shortlisted | Book Awards 2019 | Hindi Fiction
रेत समाधी (Ret Samadhi)
अस्सी की होने चली दादी ने विधवा होकर परिवार से पीठ कर खटिया पकड़ ली। परिवार उसे वापस अपने बीच खींचने में लगा। प्रेम, वैर, आपसी नोकझोंक में खदबदाता संयुक्त परिवार। दादी बजि़द कि अब नहीं उठूँगी। फिर इन्हीं शब्दों की ध्वनि बदलकर हो जाती है अब तो नई ही उठूँगी। दादी उठती है। बिलकुल नई। नया बचपन, नई जवानी, सामाजिक वर्जनाओं-निषेधों से मुक्त, नए रिश्तों और नए तेवरों में पूर्ण स्वच्छन्द। हर साधारण औरत में छिपी एक असाधारण स्त्री की महागाथा तो है ही रेत-समाधि, संयुक्त परिवार की तत्कालीन स्थिति, देश के हालात और सामान्य मानवीय नियति का विलक्षण चित्रण भी है। और है एक अमर प्रेम प्रसंग व रोज़ी जैसा अविस्मरणीय चरित्र। कथा लेखन की एक नयी छटा है इस उपन्यास में। इसकी कथा, इसका कालक्रम, इसकी संवेदना, इसका कहन, सब अपने निराले अन्दाज़ में चलते हैं। हमारी चिर-परिचित हदों-सरहदों को नकारते लाँघते। जाना-पहचाना भी बिलकुल अनोखा और नया है यहाँ। इसका संसार परिचित भी है और जादुई भी, दोनों के अन्तर को मिटाता। काल भी यहाँ अपनी निरंतरता में आता है। हर होना विगत के होनों को समेटे रहता है, और हर क्षण सुषुप्त सदियाँ। मसलन, वाघा बार्डर पर हर शाम होनेवाले आक्रामक हिन्दुस्तानी और पाकिस्तानी राष्ट्रवादी प्रदर्शन में ध्वनित होते हैं ‘कत्लेआम के माज़ी से लौटे स्वर’, और संयुक्त परिवार के रोज़मर्रा में सिमटे रहते हैं काल के लम्बे साए। और सरहदें भी हैं जिन्हें लाँघकर यह कृति अनूठी बन जाती है, जैसे स्त्री और पुरुष, युवक और बूढ़ा, तन व मन, प्यार और द्वेष, सोना और जागना, संयुक्त और एकल परिवार, हिन्दुस्तान और पाकिस्तान, मानव और अन्य जीव-जन्तु (अकारण नहीं कि यह कहानी कई बार तितली या कौवे या तीतर या सडक़ या पुश्तैनी दरवाज़े की आवाज़ में बयान होती है) या गद्य और काव्य : ‘धम्म से आँसू गिरते हैं जैसे पत्थर। बरसात की बूँद।’
गीतांजलि श्री के चार उपन्यास – माई, हमारा शहर उस बरस, तिरोहित, खाली जगह – और पाँच कहानी संग्रह– अनुगूँज, वैराग्य, मार्च माँ और साकुरा, प्रतिनिधि कहानियाँ, यहाँ हाथी रहते थे छप चुके हैं। इनकी रचनाओं के अनुवाद अंग्रेज़ी, फ्रेंच, जर्मन, जापानी, सर्बियन, बांग्ला, गुजराती, उर्दू इत्यादि में हुए हैं। इनका एक शोध-ग्रंथ – बिट्वीन टू वर्ल्ड्स : एन इंटलैक्चुअल बिऑग्रैफ़ी ऑव प्रेमचन्द भी – प्रकाशित हुआ है।
इनको इन्दु शर्मा कथा सम्मान, हिन्दी अकादमी साहित्यकार सम्मान और द्विजदेव सम्मान के अलावा जापान फाउंडेशन, चार्ल्स वॉलेस ट्रस्ट, भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय और नॉन्त स्थित उच्च अध्ययन संस्थान की फ़ैलोशिप मिली हैं। ये स्कॉटलैंड, स्विट्ज़रलैंड और फ्रांस में राइटर इन रैजि़डैंस भी रही हैं।
गीतांजलि थियेटर के लिए भी लिखती हैं और इनके द्वारा किए गए रूपांतरणों का मंचन देश-विदेश में हुआ है।
सम्पर्क : वाई ए-3, सहविकास, 68 आई पी विस्तार, दिल्ली-110 092
ईमेल : geeshree12@yahoo.co.uk
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