नदी की उँगलियों के निशान (Nadi Ke Ungliyon Ke Nishaan)
Nominated | Book Awards 2019 | Hindi Fiction
नदी की उँगलियों के निशान (Nadi Ke Ungliyon Ke Nishaan)
वरिष्ठ कथाकार कुसुम भट्ट के इस नवीनतम संग्रह में उनकी ग्यारह कहानी संकलित हैं l ये कहानियाँ केवल मानवीय संवेदानाओं की कहानियाँ भर नहीं हैं बल्कि नारी-मन का आख्यान है l एक ऐसा आख्यान जिसकी मौलिकता में प्राकृतिक सौन्दर्य और उसकी निश्छलता को अपने भीतर पूरी तरह समेटे हुए है l अगर इन कहानियों के बारे में ज़रा खुल कर कहूं तो ये कहानियाँ क़स्बाई और अर्द्धशहरी स्त्री-मन के उस आख्यान का प्रतिनिधित्व करती हैं, जिसने एक बनावटी नारी-विमर्श गढ़ लिया है l एकदम अछूते कथ्य, चमकते शिल्प और बहुआयामी भाषा की ठसक इन कहानियों की अपनी पहचान हैl इस संग्रह की कई कहानियाँ पाठक की अंगुली पकड़, उसे रह-रह कर ऐसे भारतीय गांवों की ओर ले जाती हैं, जहाँ अपनत्व एक हद तक तक शोषण का रूप ले चुकी है l बिना किसी नए प्रयोग का सहारा लिए कुसुम भट्ट ने अपना विश्वास पारंपरिक कथा शैली में बनाए रखा है l इन कहानियों को पढ़ते हुए बार-बार स्त्री, वह भी ग्रामीण स्त्री की वह छवि नज़र आती है , जिसमें वह अपने आप से संघर्ष करती है l लेखक के अवचेतन में कहीं न कहीं अपने मूल परिवेश का वह छीछ्जता अपनापा और भरोसा साफ़ नज़र आता है, जो आपसी विश्वास की धुरी होती है l कहना होगा कि ये विस्मृत और छूटे हुए अतीत की कहानियाँ नहीं हैं बल्कि वर्तमान और आगामी अतीत की ऐसी आहटें हैं, जो पाठक के अंतर्मन को देर तक थपथपाती रहती है l पहाड़ियाँ धूप की धोती में नदी के साफ़ पानी-सी ये कहानियां पाठक की अंगुली पकड़ उसके साथ ठिठक-ठिठक कर दूर तक चलती हैं l - भगवानदास मोरवाल
Review नदी की उँगलियों के निशान (Nadi Ke Ungliyon Ke Nishaan).