ग्यारहवीं ए के लड़के (Gyarahvin-A ke Ladke)
Nominated | Book Awards 2019 | Writings for Young Adults
ग्यारहवीं ए के लड़के (Gyarahvin-A ke Ladke)
गौरव सोलंकी नैतिकता के रूढ़ खाँचों में अपनी गाड़ी खींचते-धकेलते लहूलुहान समाज को बहुत अलग ढंग से विचलित करते हैं। और, यह करते हुए उसी समाज में अपने और अपने हमउम्र युवाओं के होने के अर्थ को पकडऩे के लिए भाषा में कुछ नई गलियाँ निकालते हैं जो रास्तों की तरह नहीं, पड़ावों की तरह काम करती हैं। इन्हीं गलियों में निम्न-मध्यवर्गीय शहरी भारत की उदासियों की खिड़कियाँ खुलती हैं जिनसे झाँकते हुए गौरव थोड़ा गुदगुदाते हुए हमें अपने साथ घुमाते रहते हैं। वे कल्पना की कुछ नई ऊँचाइयों तक किस्सागोई को ले जाते हैं, और अकसर सामाजिक अनुभव की उन कंदराओं में भी झाँकते हैं जहाँ मुद्रित हिन्दी की नैतिक गुत्थियाँ अपने लेखकों को कम ही जाने देती हैं। इस संग्रह में गौरव की छह कहानियाँ सम्मिलित हैं, लगभग हर कहानी ने सोशल मीडिया और अन्य मंचों पर एक खास किस्म की हलचल पैदा की। किसी ने उन्हें अश्लील कहा, किसी ने अनैतिक, किसी ने नकली। लेकिन ये सभी आरोप शायद उस अपूर्व बेचैनी की प्रतिक्रिया थे, जो इन कहानियों को पढक़र होती है। कहने का अंदाज गौरव को सबसे अलग बनाता है, और देखने का ढंग अपने समकालीनों में सबसे विशेष। उदारीकृत भारत के छोटे शहरों और कस्बों की नागरिक उदासी को यह युवा कलम जितने कौशल से तस्वीरों में बदलती है, वह चमत्कृत करनेवाला है।
Born: July 7, 1986
गौरव सोलंकी
कहानियाँ, कविताएँ, स्क्रीनप्ले, नॉन-फिक्शन और गाने लिखने वाले गौरव सोलंकी का जन्म 7 जुलाई, 1986 को हुआ। बचपन संगरिया (राजस्थान) में बीता। आईआईटी रुडक़ी से इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन के बाद गौरव कुछ साल ‘तहलका’ के लिए सिनेमा और समाज पर भी लिखते रहे। 2014 में आई फिल्म ‘अग्ली’ के गीत लिखे। फैंटम फिल्म्स ने इनकी कहानी ‘हिसार में हाहाकार’ पर फिल्म बनाने के अधिकार भी खरीदे हैं। इनकी स्क्रिप्ट ‘निसार’ 2016 में ‘दृश्यम सनडैंस स्क्रीनराइटर्स लैब’ के लिए चुनी गई। अभी मुम्बई में रहते हैं।
सम्पर्क gauravkapata@gmail.com
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पुस्तक समीक्षा – शिवम् अग्रहरि द्वारा
ग्यारहवीं के लड़के – गौरव सोलंकी
क्रांतिकारी और बहुत हद तक विद्रोही विचारो को स्वयं में समेटे हुए लेखक गौरव सोलंकी आदर्शवादिता और व्याहरिकता के द्वंद को अपनी 6 कहानियों में चित्रित करने में इतने सफल हुए है कि बाल्यावस्था से किशोरावस्था व किशोरावस्था से वयस्क होने के श्रृंखला में एक किशोर देहकर्षण , फरेब , नए रुझान प्रेम और अपराधिक मानसिकता से जूझता हुए किस कदर निराशा को अलांगीत करता है । युवा कहानीकारो में गौरव सोलंकी को पढ़ना एक दमित व अद्वितीय विचारो के बीज को पुनः पल्लवित करने का जोखिम और रोमांच दोनों है । इसका कारण रहा इनके कथा कहने का अंदाज़ , जिसमें उनकी निजी छाप है , “चौकीदार जब दिन भर ड्यूटी के बाद घर जाता होगा तो वह रात भर चौकीदार के मन स्थिति में ही रहता होगा , जब उसकी बेटी हिंदी कि किताब से जोर – जोर से कविता पढ़ती होगी तो, नर हो न निराश करो मन को ……” तो वह गुस्से में कहता होगा आवाज कम कर लीजिए मैडम ।
कहानी “यहां – वहां ” ही सिर्फ किशोर और युवाओं के विकृत आकर्षण, नैतिकता के ह्रास तथा अपराधिक मनोवृत्ति से अलग अन्य सामाजिक सरोकारों का मर्मातक चित्रण है ।
” ये हमसे अलग है इनका घर जला दो ” इस कहानी में क्षेत्रीयकरी विघटनकारी मनोवृत्ति की सधी हुई अभिव्यक्ति है ।
वहीं “ब्लू फिल्म ” तथा “ग्यारहवीं ए के लड़के ” शीर्षक कहानियों से हमारे सम्मुख लेखक ने युवाओं नैतिक क्षरण और यथार्थ की मार्मिक विवेचना की है । इन सब में मुख्य देह लालसा व उसे पाने के लिए अपराधिक कृत्य वास्तविकता पर चोट करता है और साथ ही विद्वत जनो से प्रश्न भी कि आखिर कब तक हम इस नैतिकता के आड़ में लेकर अपने बच्चो को बर्बाद होते हुए देखेंगे । क्यों न हम उन युवाओं से इस संबंध में खुलकर बात करे और बचाए अपने विश्व कि अनमोल धरोहरों को – “इंसानी दिमाग ” जो कि जल्द ही विलुप्त होने वाला है ।
अंत में “हम वहीं देखते है जो हम देखना चाहते है” हमारी मानसिकता और नजरिए पर सवालिया कटाक्ष करते हुए अपने मर्म तक पहुंच जाता है । वहीं दुनिया है , बस चस्मे अलग – अलग है ।
गौरव की यही कथ्य हमें वास्तविकता से जोड़ता है । वे अपनी लेखनी से युवा वर्गो को प्रतिबिंबित करते है और मार्ग – दर्शित भी ।
धन्यवाद् 🙏🏻
Review ग्यारहवीं ए के लड़के (Gyarahvin-A ke Ladke).